*#दिव्यांग_नहीं*
मैं अपने शरीर से लाचार सही,
लोगों की नज़रों में बेकार सही,
फिर भी मैंने अपने जीवन में माना कभी हार नहीं,
क्योंकि मैं दिव्यांग नहीं,,
काँटों की राहों को हमेशा फूलों की सेज समझ कर चला हूँ,
मुश्किलें कितनी भी हों फिर भी मुस्कुराते हुवे बढ़ा हूँ,
क्योंकि मैं बचपन से ही संघर्षों में पला हूँ,
इसलिए मेरी सफलता मेरे लिए कोई महान नहीं,
क्योंकि मैंने कभी खुदको समझा दिव्यांग नहीं,,
ना नेताओं से मेरे भाषण है,
ना राजाओं से सिंघासन हैं,
ना ऊँचे महल की आजमाइश है,
थोड़ा प्यार मिले ये ख्वाहिश है,
मेरे कष्ट अँधेरे को जो दूर करे,
ऐसा दीपक देदो चाँद नहीं,
क्योंकि मैं दिव्यांग नहीं,,
मुझे कड़ी धूप में चलने दो,
थोड़ा ओर परिश्रम करने दो,
मैं पत्थर हूँ चोटें खाने दो,
मुझे मूरत तो बन जाने दो,
मुझे दुनिया को दिखलाने दो,
सबको विश्वास दिलाने दो,
जो आप कर सकते हैं,
मैं वो क्यों नहीं,
मैं भी इंसा हूँ हैवान नहीं,
क्योंकि मैं दिव्यांग नहीं,,
अभी ना आलस से आराम करेंगे,
जो आगे बढ़ के काम करेंगे,
ओरों के लिए एक मिसाल बनेंगे,
तो सब हमको भी सलाम करेंगे,
मैं उगते कल का सूरज हूँ,
कोई ढलती आज की शाम नहीं,
क्योंकि मैं दिव्यांग नहीं।
साभार: अज्ञात
No comments:
Post a Comment